Add To collaction

हृदय स्मृति

नक्षत्र लोक को दृग देखे, 
अंतर्मन की अभिलाषा मेरा।
संज्ञा शून्य दशा है मेरी, 
स्मृति हृदय तल में डाले डेरा।
उत्तान व्योम के तारों में, 
हर चमक मे खोजू वो चेहरा।
हर पल राह मै देखा करता, 
हृदय में आघात है गहरा।

पल-पल की लीला रचना, 
आंखो से ना ओझल होता।
श्वास नली में एक ही सौरभ, 
तन मन में भिना रहता।
अँधियारा छाए हर पल, 
चाँद सितारें दिन में दिखता।
छाप छपी जो उर अंतर में,
शीघ्र ना स्मृति धूमिल होता।

सपनों में भी खोज रहा, 
दिखता न प्रतिबिंब भी उसका।
स्मृति सदा ही आती रहती,
सुप्त चेतना होता जिसका।
अनल में तप रहा है मन, 
उत्कट करता अनिल का झोंका।
जीवन की माया है यह, 
काल चक्र को किसने रोका।

   7
1 Comments

Meenakshi sharma

15-Mar-2021 09:51 PM

शानदार रचना

Reply